हर गली से एक बस्ती गुजरती
खड़ी हु उस मोड़ पर
जहा -
दो गलिय मिल जाती
सूखे पत्तो पर से गुजरती सरसराहट
और मौन खड़ी दो पाटिया
कैसे होगा फसलो के दरम्या ये रिश्ता ?
मेरी खामोसी कुछ कहना चाहती है
मौन खड़ी दो पाटियो को जोड़ना चाहती है
पर
कविता कुछ ठहर सी गयी है
संवेदना जडवत हो गयी है
की वह दो पाटिया मौन ही है
खुश्क दोपहर सी
उखड्ती पपड़ियो सी
सूखे पत्तो का भूअराया सावन अड़ा है
अपनी ही जगह
स्निग्धता और रूखेपन की दो पाटिया
संतरे के फाको सी
जुड़कर भी अलग है
जैसे हम-तुम !!!
प्रूफ की मिस्टेक्स देख लीजिये बाकी लेखनी मजबूत है. जारी रखिये. संभव हो तो कोई वृतांत या बिहार की रूढीवादी के बारे में भी लिखिए. ऐसी सामग्री खोजने से भी किसे ब्लॉग में नही मिलती है. आगे के लिए शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंस्निग्धता और रूखेपन की दो पाटिया
जवाब देंहटाएंसंतरे के फाको सी
जुड़कर भी अलग है
जैसे हम-तुम !!!
बहुत खूब!
अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर।
सादर
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जो मेरा मन कहे पर आपका स्वागत है
अच्छी अभिव्यक्ति है सृजनात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती रहे ऐसे ही ....
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत भाव संग्रह्।
जवाब देंहटाएंbahut khub
जवाब देंहटाएंस्निग्धता और रूखेपन की दो पाटिया
जवाब देंहटाएंसंतरे के फाको सी
जुड़कर भी अलग है
जैसे हम-तुम !!!
अच्छी अभिव्यक्ति...!!
देखने में तो भले छोटा है वो
जवाब देंहटाएंपर इरादे का बड़ा पक्का है वो
जात से अपनी बहुत पुख्ता है वो
आम जन का पेशवा अन्ना है वो
कौन कहता है की गाँधी मर गया
बन के अन्ना आज भी जिंदा है वो
कुछ अलग ही बात है उस शख्स में
आम इंसां है मगर यकता है वो
रौशनी करना ही उसका ध्येय है
दीप बन कर राह में जलता है वो 09810561782 AJAY AGYAT
bhaw may panktiyan,sundar rachna.
जवाब देंहटाएंमेरी खामोसी कुछ कहना चाहती है
जवाब देंहटाएंशिवांजलि, तुम्हारी कविता पढ़ी। खामोशी की आवाज़ें बहुत दूर तक सुनाई देती हैं।
कविता पढ़ कर मन में आश्वस्ति हुई। अपार शुभकामनाऍं।
bahut pyari kavita h
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