शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

श्रम की कीमत



बहुत बार हम चाहते हैं –
कि सड़कों पर जलती रोशनी भी मुस्कुराए
इन सड़कों पर उड़ने वाले जुगनुओ मे भी
उजाले भर की रोशनी का खयाल आए
पर ऐसा होता नहीं –
मेरी रोशनी !
कभी पत्थरों का शिकार बनती
कभी कुछ चालबाजों के शिकारगाह का गवाह बनती
सड़कों पर बिखरती रोशनी
रात को रात के सौन्दर्य मे ढककर
काली रातो को उजली बनाने की जुगत मे रहती
हम !
सड़कों के किनारे वाले लैम्प पोस्ट
बोल न पाएँ
अपनी रोशनी घरो मे बिखेर न पाएँ
अपने श्रम को
उन्नति की शक्ल न दे पाएँ
इसलिए हमे दिया जाता है
गेहू...
दो रुपये किलो !!

9 टिप्‍पणियां:

  1. kaisi hai, aap sab
    ye btaye ki
    ydi paarijaat kitab bhejni h
    to knha bhejungi
    apni saheli se puchkr btaiye

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  2. shivanjali, aap sab knha chali gyi ho, mujhe tum sabhiki bahut yaad aati hai

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  3. shivanjali, happy new year, aap sabhi kaise h, bahut yad aati h, tum sabhi ki

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