अब भी
चौराहों पर बालक खड़े हैं
भूखे
अब भीघूँघट में मुखड़ा छुपाये
पनिहारिन दूर तक जाती है
कोई पलक टकटकी लगाये
आज भी किसी का बाट जोहती है
आसमान का नीला फलक
आज भी
अपनी और उठने वाली नजरो से
बिंध जाता है
आज जबकि "सब है" का दम भरते
बेदम पड़े कुछ पस्त आम
बिलकुल चूस कर फेक दिए गए है
चारो तरफ है इश्तिहार
और नीचे छपा है-
Conditions apply !!!
सशक्त लेखनी का शानदार नमूना।
जवाब देंहटाएंसादर
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकल 16/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
bahut khub..
जवाब देंहटाएंwelcome to my blog :)
sabkuch hai, bhaagte logon ko nazar nahi aa raha ... bhawpurn rachna
जवाब देंहटाएंSahi kaha har jagah Conditions Apply hai....
जवाब देंहटाएंZindagi bhi sukhmay ho sakti hai...terms n conditions apply
बहुत खूब! बहुत सुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंसुन्दर बिम्ब प्रयोग.... अच्छी रचना...
जवाब देंहटाएंसादर बधाई...
शसक्त अभिव्यक्ति ...सादर अभिनन्दन !!!!
जवाब देंहटाएंकृपया टिपण्णी के लिए वर्ड वेरिफिकेशन हटा दीजियेगा ..टिपण्णी लिखने में दिक्कत होती है....सादर
जवाब देंहटाएंसशक्त खूबसूरत लेखनी की बढ़िया प्रस्तुति,...बधाई ....
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
नेता,चोर,और तनखैया, सियासती भगवांन हो गए
अमरशहीद मातृभूमि के, गुमनामी में आज खो गए,
भूल हुई शासन दे डाला, सरे आम दु:शाशन को
हर चौराहा चीर हरन है, व्याकुल जनता राशन को,
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे
सुन्दर कविता |
जवाब देंहटाएंजाने कहाँ से आपके ब्लॉग तक पहुंची...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लेखन...