बहुत बार हम चाहते हैं –
कि सड़कों पर जलती रोशनी भी
मुस्कुराए
इन सड़कों पर उड़ने वाले
जुगनुओ मे भी
उजाले भर की रोशनी का खयाल
आए
पर ऐसा होता नहीं –
मेरी रोशनी !
कभी पत्थरों
का शिकार बनती
कभी कुछ चालबाजों के
शिकारगाह का गवाह बनती
सड़कों पर बिखरती रोशनी
रात को रात के सौन्दर्य मे
ढककर
काली रातो को उजली बनाने
की जुगत मे रहती
हम !
सड़कों के किनारे वाले
लैम्प पोस्ट
बोल न पाएँ
अपनी रोशनी घरो मे बिखेर न
पाएँ
अपने श्रम को
उन्नति की शक्ल न दे पाएँ
इसलिए हमे दिया जाता है
गेहू...
दो रुपये किलो !!
har vastu aur sthan ka apna vajud hota hai.
जवाब देंहटाएंachchhi kamnaa.
shukriya Dhirendra Ji.........
हटाएंnhi pta kyon
जवाब देंहटाएंtumhare git sunne ki hasrat h, kabhi sunao, apne git
जवाब देंहटाएंkaisi hai, aap sab
जवाब देंहटाएंye btaye ki
ydi paarijaat kitab bhejni h
to knha bhejungi
apni saheli se puchkr btaiye
jb kitab publish hogi, aap adesh kijiye, ki knha bheju
जवाब देंहटाएंshiva, kais ho, tum, sab kaise h
जवाब देंहटाएंshivanjali, aap sab knha chali gyi ho, mujhe tum sabhiki bahut yaad aati hai
जवाब देंहटाएंshivanjali, happy new year, aap sabhi kaise h, bahut yad aati h, tum sabhi ki
जवाब देंहटाएं